Tuesday, March 22, 2011

चलिए पागल से जल्द ही मुक्ति मिल गई

अरे भाई डॉक्टरों की मत पूछिए. कोई दसेक साल पहले मैं अपने बड़े भाई (अखिलेश कुमार ) के साथ उन्हीं के इलाज के सिलसिले में जेनरल फिजिसियन एवं हर्ट स्पेशलिस्ट महेंद्र नारायण ( अब दिवंगत ) के यहाँ गया था. रात्रि के बारह बज चुके थे और मरीजों का अब ...भी ताँता लगा हुआ था. हम दोनों ही इंतजार कर थक चुके थे लेकिन नंबर आने का नाम नहीं ले रहा था. कहा जाता है न कि 'खाली दिमाग शैतान का घर'-सो मेरे बड़े भाई ने एक नुस्खा अजमाया. उन्होंने मुझसे पूछा , 'राजू जरा बताओ कि यह डॉक्टर कब तक मरीजों को यूँ ही देखता रहेगा ?' मैंने अपने पूर्व संचित ज्ञान के आधार पर जबाव दिया-'जबतक भोर समझकर चिडियाँ बोलना न शुरू कर दे.' उन्होंने फिर सवाल किया, 'तो फिर डॉक्टर साहब सोते कब हैं ?' डॉक्टर साहब की दिनचर्या का मुझे कुछ-कुछ अंदाजा था, इसलिए मैंने चट कहा, 'सोने का तो नाम ही मत लीजिए. यहाँ से उठेंगे तो सीधे पी.एम.सी.एच.के लिए दौड़ेंगे. फिर वहां से दौड़ते हुए दोपहर में अपने क्लीनिक घुसेंगे. और 'रात्रि -लीला' तो आप लाइव देख ही रहे हैं.' बड़े भाई अब चिंतित हो उठे . बोले , 'डॉक्टर साहब , लगता है, कई रातों से सो नहीं सके हैं , इसलिए इनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं होगी . ऐसा करते हैं कि पहले इनका इलाज किसी मानसिक चिकित्सक से करवाते हैं . अगर स्वस्थ हो गये तो फिर इनसे अपना इलाज कराना ठीक रहेगा.' मैंने कहा , 'आप बिल्कुल दुरुस्त फरमा रहे हैं .' महेंद्र नारायण का कम्पौंडर यह सब पहले ही से सुन रहा था और आग बबूला हो रहा था . डॉक्टर को पागल कह देनेवाली बात उसे असह्य लगी. वह दौड़ा हुआ अंदर गया और कह आया, 'सर , बाहर दो ऐसा पागल पंहुचा हुआ है जो आपही को पागल कहता है और सारे मरीज उसकी बातों में दिलचस्पी ले रहे हैं.' डॉक्टर ने तत्काल उसे हमदोनो को अंदर भेजने का आदेश दिया. अब हमलोग अंदर थे . महेंद्र नारायण मुस्कुराहट भरी एक टिप्पणी के साथ कि 'पागल के पास आपलोग क्यों आ गये ' प्रेस्क्रिप्शन पर दवाइयों का नाम लिखने में व्यस्त हो गये. बाहर हम दोनों काफी खुश थे कि चलिए पागल से जल्द ही मुक्ति मिल गई.