Monday, November 1, 2010

समाजवाद का सपना

यह केवल भविष्य की बात होती तो इसे सपना कहकर टाला भी जा सकता भी था लेकिन इतिहास ने जैसाकि बताया है , अतीत में भी अपराध ,हिंसा ,आर्थिक असमानता आदि से मुक्त समाज का अस्तित्व रहा है . ये सारे छल -छद्म निजी संपत्ति के अविर्भाव के बाद ही समाज में... अपनी जड़ें जमा सके .

आप आदिम समाज पर एक नजर ले जाइए , वहां हिंसा -अपराध से मुक्त समाज है .इसकी एकमात्र वजह वहां निजी संपत्ति का न होना ही बताया जाता है . इसलिए निजी संपत्ति के इस 'विष -वृक्ष' को समाप्त कर निश्चित ही अपराध और हिंसा से मुक्त समाज की स्थापना संभव है . यह महज एक कल्पना नहीं है, इसके वैज्ञानिक -तार्किक आधार हैं .

अव्वल तो यह कि अगर यह महज एक कल्पना होती तो हमारे 'बुर्जुआ मानसिकता' से लैस भाई -बंधु इतनी चिल्ल -पों मचाते ही नहीं . यह उनका 'डर' ही ही है जो इस वैज्ञानिक समाजवाद की कल्पना को एक 'दुह्स्वप्न' की तरह पेश करता है .

हाँ , ये और बात है कि यह सब बहुत आसान नहीं है . और इसकी कोई एक निश्चित तारीख भी तय नहीं कि जा सकती . लेकिन इसे सपना कहकर हवा में उड़ाया भी नहीं जा सकता .

अभय जी हम मार्क्स का नाम न भी लें तो काम चलेगा. देशी विद्वान श्री काशिनाथ रजवाड़े की जो किताब है, वही आपकी बात के जवाब में काफी है . उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि एक समाज (भारत के सन्दर्भ में है वह ) ऐसा भी रहा था एक पति की कल्पना नहीं थी.

निजी ...संपत्ति मैंने इसलिए कहा कि उसी से निजी परिवार भी निकला है .

मेरा कहना यह है कि भारतीय समाज में पति भी एक आविष्कार है , सदा से उसका अस्तित्व नहीं रहा है . बेहतर होगा कि आप समझें कि ऐसा राजवाड़े जी कहते है -मेरा भी उसमे विश्वास है . पति शब्द ही संपत्ति की अवधारणा को ध्वनित करता है . निजी संपत्ति पर मेरा जोर इसीलिए है कि पति समेत सारी चीजें -जितना कुछ भी निजी है -उसके साथ या बाद पैदा होती है .

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