Monday, November 15, 2010

Singh Umrao Jatav
दिलीप मण्डल जी, किन वाहियात लोगों के बारे में बात पूछी है। मैंने लंबे 36 वर्ष सशस्त्र सेना में अधिकारी के रूप में नौकरी की है। बहुत से लोगों को शायद न मालूम हो,लेकिन हमारे इस तथाकथित धर्मनिरपेक्ष देश में सशस्त्र सेनाओं में प्रति रविवार और स...ारे ही हिन्दू त्योहारों पर मंदिर में जाना अनिवार्य है। यदि यूनिट में मंदिर के अलावा मस्जिद,गुरद्वारा ,चर्च इत्यादि हैं तो वे वहाँ जाते है।जो नास्तिक हैं उन्हें कोई छूट नहीं है। सो कितनी ही बार तो मुसलमान अधिकारी को भी पुजारी से ये वाहियात लाल धागा बँधवाना पड़ जाता है। लेकिन में पूरे 36 वर्ष अड़ा रहा और न मंदिर गया, न धागा बँधवाया। नतीजा यह हुआ कि मुझ से जवाब तलब किया गया,धमकियाँ दी गईं। अंतत: मुझे भी अपने सीनियर को संविधान का हवाला देकर बताना पड़ा कि यदि मुझे मजबूर किया जाएगा तो मैं उनके खिलाफ कोर्ट में चला जाऊंगा। संदर्भवश इस लाल धागे को धर्मभीरु हिन्दू किस हद तक लेते हैं इससे संबंधित एक घटना। मेरी पोस्टिंग तब मिज़ोरम में थी। सहायक कमांडेंट के पद के एक उड़िया डाक्टर उस यूनिट में थे। वो और उनकी पत्नी हद दर्जे के धरभीरू थे। आर्मड फोरसेज में मंदिर का पुजारी उसी यूनिट का कोई सिपाही इत्यादि होता है ( आर्मी में वो सूबेदार होता है) सो ये डाक्टर और उनकी पत्नी अपने बच्चों समेत सबसे निचले रैंक के उस सिपाही पुजारी के सुबह उठते ही पैर छूते थे। किस्सा लंबा है लेकिन, खैर उस सिपाही पुजारी ने एक दिन जब ये डाक्टर एक दिन के लिए मुख्यालय से दौरे पर बाहर गए थे रात में उनकी पत्नी पर बलात्कार करके गला घोंट कर हत्या कर दी। पुजारी को अरेस्ट करके केस चला। यूनिट कि बदनामी हुई। मैंने तो सोचा यह था कि डाक्टर का अब पुजारी-पूजा पाठ से मोहभंग हो गया होगा। लेकिन उस पुजारी के अरेस्ट हो जाने पर दूसरा कोई सिपाही पुजारी नियुक्त होना ही था। तथाकथित भगवान को अकेला छोड़ा जाना संभव ही नहीं था!!! सो दूसरा सिपाही पुजारी नियुक्त हुआ और डाक्टर उस अगले पुजारी के पैर छूने लगे-गंडे बँधवाने लगे। लानत है,भईSee more

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