Thursday, October 28, 2010

सत्ता से परे कोई देश नहीं

एक सवाल है कि भारत की किसी भी भूमि या क्षेत्र को भारत का ना मानना देशद्रोह जैसा अपराध है परन्तु भारत में सदियों से रहने वाले यहाँ के बहुत से नागरिको को भारत देश का ना मानना किस श्रेणी का अपराध है ...और उसके लिए क्या सजा है ..कुछ कहेंगे इस पर आप ?

    • Raju Ranjan Prasad
      एक तरफ तो हम आर्थिक नीतियों के मामले में वैश्वीकरण की बात कर रहे हैं , दूसरी तरफ 'राष्ट्र' को फोकस करना चाहते हैं . क्योंकि इससे एक सरकार की अनिवार्यता बनी रहती है . वैश्वीकरण और राष्ट्र -दोनों साथ -साथ नहीं चल सकते. चल भी नहीं रहे हैं . अब ...तो न राष्ट्र है , न सरकार . सरकार भी एन .जी .ओ . में तब्दील हो चुकी है .

      देश की अवधारणा एक 'मिथ्या चेतना' है . बहुत हद तक अगर पाकिस्तान न हो तो हिंदुस्तान भी न हो . हिदुस्तान में राष्ट्रवाद सहज न होकर साम्राज्यवाद की प्रतिक्रिया में पैदा हुआ था . इसलिए इसका अस्तित्व मुझे प्रारंभ ही से कृत्रिम लगता है , बनावटी है . दिन भर हम राष्ट्र-विरोधी काम करते हैं और राष्ट्रवादी बने रहते हैं .

      ये कुछ मुट्ठी भर लोग हैं जो 'देश' का 'खेल' खेलते हैं . वे जब चाहें राष्ट्र पैदा कर सकते है और ध्वस्त भी . वही तय करते हैं कि कौन देशभक्त है और कौन देशद्रोही.

    • आज भी एक बहुत बड़ा तबका है जिसका राष्ट्रवाद यह कहते शुरू होता है कि 'अंग्रेज देर से आये और जल्दी चले गए' . क्या ऐसा कहनेवाले देशद्रोही हैं ? जिसने मस्जिद गिराई वे देशद्रोही हैं ? गोदामों में पड़े -पड़े अनाज सड रहे हैं और बच्चे -बूढ़े भूखों मर रहे हैं . क्या सरकार के खिलाफ देशद्रोह का मामला बनता है ?

      नहीं. क्योंकि न हमरे पास सेना का बल है न ही अदालतें . जिनकी अदालते हैं वे किसी को भी देशभक्त और देशद्रोही साबित करने में सक्षम हैं . आये दिन अख़बारों में पढ़ता हूँ , 'पुलिस के इतने जवान शहीद हुए. ' बाकी के सारे लोग 'मारे ' जाते हैं . इसलिए देश का मतलब सत्ता होता है . सत्ता से परे कोई देश नहीं होता है.

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