Sunday, October 31, 2010

समाजवाद का सपना

यह केवल भविष्य की बात होती तो इसे सपना कहकर टाला भी जा सकता भी था लेकिन इतिहास ने जैसाकि बताया है , अतीत में भी अपराध ,हिंसा ,आर्थिक असमानता आदि से मुक्त समाज का अस्तित्व रहा है . ये सारे छल -छद्म निजी संपत्ति के अविर्भाव के बाद ही समाज में... अपनी जड़ें जमा सके .
अभय जी हम मार्क्स का नाम न भी लें तो काम चलेगा. देशी विद्वान श्री काशिनाथ रजवाड़े की जो किताब है, वही आपकी बात के जवाब में काफी है . उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि एक समाज (भारत के सन्दर्भ में है वह ) ऐसा भी रहा था एक पति की कल्पना नहीं थी.

निजी ...संपत्ति मैंने इसलिए कहा कि उसी से निजी परिवार भी निकला है .

No comments:

Post a Comment