Friday, January 14, 2011

पुनर्जन्म और कबीर

गुरु को मानुष जो गिनै, चरणामृत को पान।

ते नर नरिके जाहिगें, जन्म जन्म होय स्वान।।


गुरु की आज्ञा आवई, गुरु की आज्ञा जाय।

कहै कबीर सो संत है, आवागमन नसाय।।


झूठे गुरु के पक्ष को, तजत न कीजै बार।

पार न पावै शब्द का भरमें बारंबार।।


सांचे गुरु के पक्ष में, मन को दे ठहराय।

चंचलते निश्चल भया, नहिं आवै नहीं जाय।।


सूर समाणौं चंद में, दहूँ किया घर एक।

मन का च्यंता तब भया, कछू पूरबला लेख।।


देखौ कर्म कबीर का, कछु पुरब जनम का लेख।

जाका महल न मुनि लहैं, (सो) दोसत किया अलेख।।

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