Saturday, November 13, 2010

सरकार ही क्यों वामपंथी पार्टियां तक सारा काम अंग्रेजी में करती हैं . यह सब सुविधा और सहूलियत के नाम पर चलाया जाता है .लेकिन सच्चाई यह है कि एक वर्ग -विभाजित समाज में भाषा भी अपनी सांस्कृतिक -सामाजिक हैसियत के आधार पर वर्गीकृत है .हिंदी के मुकाबले अंग्रेजी एलीट है तो भोजपुरी -मगही के मुकाबले हिंदी. किसी मगही -भाषी के समक्ष आप अगर खड़ी बोली हिंदी बोलते हैं तो झट कह देगा -'अंग्रेजी' मत बोलिए .


सच तो यह है कि भाषाओँ में आपस में विरोध नहीं होता । हमारा यह मानना कि हिंदी के विकास से बोलियां कमजोर अथवा नष्टप्राय हो रही हैं ,वैज्ञानिक या तर्कसम्मत नहीं है.किसी भी भाषा का 'स्वतंत्र विकास' किसी भी दूसरी भाषा के नैसर्गिक विकास में बाधक नहीं है .यहाँ तक कि अंग्रेजी तथा अन्य विदेशी भाषाओँ से हिंदी समृद्ध हुई है . मुझे लगता है , हम भाषा पर बात करते विचार को अलग छोड़ देते हैं . अंग्रेजी ने विचार के स्तर पर हिंदी एवं अन्य भाषाओँ को जो योगदान दिया है उसे भुलाया नहीं जा सकता . सारी गडबड़ी भाषा के 'प्रायोजित विकास ' की है .

No comments:

Post a Comment