Friday, November 19, 2010

इतिहास लेखन की कई धाराएँ साथ -साथ चलती हैं . सब को सत्ता के खेल का हिस्सा नहीं बताया जा सकता . मजे की बात है 'दोबारा ' लिखे गये इतिहास का भी पुनर्लेखन होता है .प्रत्येक पीढ़ी अपने समय का इतिहास अपने तरीके और वक्त की मांग के हिसाब से लिखती है . इन्हीं अर्थों में 'इतिहास का अंत' नहीं होता या कहें कि 'अंतिम इतिहास' जैसी चीज नहीं होती .

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