Saturday, November 20, 2010

राम की शक्तिपूजा के बहाने

भाई 'राम की शक्तिपूजा' का नवल जी का अध्ययन संस्कृत ज्ञान के अभाव में कितना प्रामाणिक है , मैं नहीं कह सकता .
राम -कथा पर कविता लिखकर तुलसीदास आज भी हिंदी के सबसे बड़े कवि हैं .उन्होंने परंपरा से जितना लिया है निराला बेचारे क्या ले पाएंगे. परंपरा का ज्ञान अथवा पूर्ववर्ती ज्ञान का उपयोग चोरी है , मुझे समझ में नहीं आता. मिथकों की व्याख्या करके कोई प्रगतिशील कहलाये और कोई प्रगति विरोधी -यह उचित नहीं .राम की शक्तिपूजा और सरोज -स्मृति में चुनाव का भी सवाल नहीं है .इनमें से एक को छोड़कर दूसरे को समझा भी नहीं जा सकता शायद . शायद इसलिए कि राम की शक्तिपूजा पर बोलने का मैं उचित ही अपने को लायक नहीं मानता .चूँकि एक पाठक के बतौर मैं इस कविता को पढ़ता रहा हूँ इसलिए निवेदन कर सकता हूँ कि यह राम -रावण युद्ध का वर्णन न होकर निराला के खुद कि समरगाथ है .सरोज स्मृति को भी मैं इसी सन्दर्भ में पढ़ता हूँ .इन दोनों के कथा -सूत्र मुझे एकमेव लगते हैं . राम की शक्तिपूजा में मुझे इतना आवेग मिलता है कि इसकी कृत्रिमता के बारे में सोंच भी नहीं पाता .

हाँ मुसाफिर भाई , मुझे जहां गलती लगती है वहां मैं खुले मन से स्वीकार करता हूँ -जैसा आपने मेरी ही पंक्तियों को उद्धृत कर दिखाया भी है लेकिन राम की शक्तिपूजा को एक बड़ी कविता कहने से अब भी इंकार नहीं कर सकता . प्रगतिशीलता मेरे लिए मात्र फैशन न...हीं है एक स्थायी जीवन मूल्य है . लेकिन जबतक मुझे खुद को किसी बात का इत्मीनान नहीं हो जाता , स्वीकार करने की गलती नहीं कर पाता .मैं फिर अपनी सीमा का उल्लेख करते करते कहूँ कि राम की शक्तिपूजा पर निष्कर्ष रूप में कहने लायक नहीं हुआ हूँ . आस्वाद के स्तर पर यह कविता मुझे अब भी बड़ी लगती है .

भाषा में सवर्ण और दलित मानसिकता का मैं विरोधी हूँ और इसे गाली के रूप में स्वीकार करता हूँ .वर्गीय राजनीति का हिमायती रहा हूँ जिसका मुझे गर्व है .हाँ मैं इसे फिर से संस्कृत की तैयारी के साथ पढ़ने की योजना में हूँ और सदिच्छा है कि आपके विचारों के निकट पहुँच सकूँ .

तुलसीदास की छवि सिर्फ रामचरितमानस को आधार बनाकर नहीं गढ़ी जा सकती .कवितावली में तो वे कई आधुनिक प्रगतिशीलों के भी नाक -कान काटते है.ख़म ठोकनेवाले त्रिलोचन को भी तुलसीदास के यहाँ बहुत कुछ सीखने को मिला है .अशोक भाई , मेडिकल सायंस के कुछ अंधविश्वासों का रहस्य खोलें तो समझा जा सके .

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