Sunday, November 14, 2010

गाँधी का दर्शन जितना ही छोटा था आचरण उतना ही बड़ा . लोग उनके आचरण से झुकते थे , दर्शन से नहीं . गाँधी के इस रूप की दक्षिण -वाम सबको जरूरत है . मैं उस दिन की कल्पना करना चाहता हूँ जब हर आदमी गाँधी होगा या होने की कोशिश करेगा . मार्क्स का दर्शन और गाँधी का निजी आचरण -हमारा भविष्य इसी में बसता है .10 November at 09:16 · · 3 people

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