Sunday, November 21, 2010

निराला की कविताओं में इन बातों के होने से कोई इंकार नहीं कर सकता लेकिन समग्रता में वे हिंदी कविता को आगे ले जानेवाले कवि हैं. भारत में राष्ट्रीयता का विकास ही हिंदू एवं मुस्लिम राष्ट्रीयता (आप उसे पुनरुत्थानवाद कहें ) के रूप में हुआ. कविता... ही नहीं, इतिहास लेखन के क्षेत्र में भी ऐसी ही प्रवृत्ति देखी जा रही थी. प्रख्यात इतिहासकार के. पी. जायसवाल भी 'हिंदू पोलिटी ' में साफ -साफ दिखा रहे थे कि भारत प्रजातंत्र का आदि- स्थल रहा है .इस तरह का 'अविवेक' शायद साम्राज्यवाद की इस प्रस्थापना की प्रतिक्रिया में पैदा हो रहा था कि 'भारतीयों का अपना कोई इतिहास नहीं है'. इस विशेष ऐतिहासिक परिस्थिति में भारतीय राष्ट्रवाद का यह स्वरुप भी कुल मिलकर प्रगतिशील ही माना जायेगा,बल्कि माना ही जाता है .इसे साम्राज्यवाद का दबाव मानना चाहिए. ध्यान रखने की बात है कि अपनी राष्ट्रीयता अंग्रेजी साम्राज्यवाद की प्रतिक्रिया में पैदा हुआ, स्वाभाविक विकास नहीं था यह. और यह प्रतिक्रिया नेहरु तक में मिलती है. उनके लिए भी भारतीय इतिहास में गुप्त काल का उत्थान 'राष्ट्रीयता ' का उत्थान है.

छायावादी कवियों में समाजवाद का का सीधे -सीधे नाम लेकर सबसे ज्यादा कविताएं संभवतः पंत द्वारा लिखी गईं लेकिन हिंदी पाठकों के विवेक ने उन्हें वह गौरव नहीं दिया जो निराला को है. अगर यह सब इतिहास की भूल है तो आप उसका निश्यय ही सुधार करें. इतिहास के इस फैसले का आप क्या करेंगे कि कोई मिथकों पर लिखकर बड़ा कवि हो जा रहा और कोई समाजवाद पर लिखकर भी कमतर ही रह गया ?See more

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